देश – प्रेम
कि जज्ब-ए देश – प्रेम ने तराशा है हमें
कतरा कतरा लहू बह जाए भी तो क्या!
दुश्मनों को चीर कर आसमानी हो जाऐं
देश की आन की खातिर
यह जान निकल जाए भी तो क्या!
तिरंगा आन है मेरी तिरंगा शान है मेरी
सीने पर गाड़ दूं झंडा
कि वतन की शान कम है क्या!
भारत माँ के वीर सपूत हम
जान हमारी माँ की शान
जन्म भूमि यह स्वर्ग से प्यारी
प्राण निछावर कम है क्या!
चल पड़े जो बाँधकर
सर पर कफ़न
थाम कर जश्ने तिरंगा
आज फिर अहले वतन
सरजमीं की प्यार में उठे कदम
माँ तुम्हारी धड़कनों में जज़्ब हों यह कम है क्या!
वतन की राह में तुमसे
मिलेंगे फिर एकदिन हम
लिपट कर इस तिरंगे में
यह अरमान कम है क्या!
© अनिल कुमार श्रीवास्तव