” देश की तरफ से रानी लक्ष्मी बाई को मेरी कलम से गर्वान्वित श्रधांजलि “
आज के ही दिन ( 18 जून 1858 ) शहीद विरांगना रानी लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त हुई थीं ऐसे महान व्यक्तित्व को मेरा कोटि कोटि नमन ??
तूने जो उठाई कुल्हाड़ी
मेरी बेड़ियाँ काटने को
आज भी याद है ,
वो पहला वार मेरी जंजीरों पर…
हद का सूकून था
वो तेरा ही जूनून था ,
जो तूने ये पहल की
फिर तो कितनों ने चहल की ,
तुझे तो बस मेरी फिक्र थी
मुझे जंजीरों से छुड़ाने की जिद थी ,
आजाद होने के लिए मुझे हर चोट थी मंजूर
मुझे था पता तू ये आग जलायेगी जरूर ,
इतनी छोटी उम् मे गजब का था हौसला
तू चिड़िया थी और मैं थी तेरा घोसला ,
अपने घर में किसी और का अधिकार
स्वीकार नही हुआ तुझसे ,
हर कीमत पर वापस लेने का
वादा किया था तूने मुझसे ,
हर दाव खेले तूने मुझे छुड़ाने को
आजादी के पंख ढूंढ रही थी मुझे उड़ाने को ,
तू नन्ही थी और नन्ही थी तेरी जान
परवाह नही की तूने उसकी भी
रखना जो था तुझको अपनी इस माँ का मान ,
तेरे प्रारंभ ने अंत दिखा दिया मुझको
तेरी तलवार ने धूल चटा दिया सबको ,
सच कहा सबने वाकई तू मर्दानी थी
मेरी धरती पर जनमी तू वीर जनानी थी ,
तुझसे ही मेरी आन थी
तुझसे ही मेरी आन है
तू ही मेरा मान थी
और तू ही मेरा मान है ,
हर एक औरत में
तेरे जैसा ही जोश हो
मेरी मान मेरी आन का
उन सबको भी होश हो ,
तूने जो तोड़ी थी जंजीरें
कोई नही अब जोड़ पायेगा
अगर किसी ने कोशिश भी की तो
फिर से सन् सत्तावन जग जायेगा ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 01/08/18 )