देशभक्त
लिखे कलम यह देशगान ही यही हृदय की अभिलाषा
लिखने आज चला हूँ मैं तो देशभक्ति की परिभाषा।
यदि आघात धरा पर हो तो तभी खौलता शोणित हो
देशद्रोह की बात सुने तो रोम रोम भी क्रोधित हो।
भारत माँ का पूजक हो वह कोई पाप नहीं देखे
होता हो अन्याय कहीं यदि वह चुपचाप नहीं देखे।
उसकी मधुरिम वाणी में बस जन-गण गान सुनाई दे
उसकी दोनों आँखों में बस हिंदुस्तान दिखाई दे।
मात पिता के चरणों में जो नित नित शीश झुकायेगा
अपनी पूरी निष्ठा से जो अपना फर्ज निभाएगा
बेटी को बेटे जैसा जग में सम्मान दिलाएगा
सच कहता हूँ वही मनुज बस देशभक्त कहलायेगा।
कुछ डूबे हैं व्यसनों में तो कुछ डूबे हैं चोरी में
कुछ व्यभिचारी बन बैठे कुछ डूबे रिश्वतखोरी में।
देश पुकार रहा सबको यदि अब भी सँभल नहीं पाए
बहुत देर हो जायेगी यदि खुद को बदल नहीं पाए।
हुए देश की ख़ातिर जो बलिदानों को सब याद करो
हाथ जोड़कर विनती है यह भारत मत बर्बाद करो।
नहीं किया यदि लोगों ने इतना बदलाव विचारों में
तो इन सबकी गिनती भी करनी होगी गद्दारों में।
छोड़ सभी लालच जो बस ईमानदार बन जायेगा
जग में जो भारत माता की
जय जयकार कराएगा।
मुक्त कंठ से गर्व सहित जो वन्दे मातरम गायेगा
सच कहता हूँ वही मनुज बस देशभक्त कहलायेगा।
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कवि विवेक प्रजापति
काशीपुर(उत्तराखंड)
9720081882