देशभक्त
राष्ट्र हित का जज्बा जिसमें,
वह सुंदर वतन सजाता है।
ऋतु मौसम दिन रात परे,
जो हरदम अलख जगाता है।
जिसका दमखम सुन बैरी,
दूर से ही थर्राता है,
ऐसे देशभक्त वीरों को,
जन जन शीश झुकाता है।
दृग जिसके चीतों के जैसे,
जो अरि को खूब डराता है।
नापाक इरादे वाले जन का,
जो गर्दन काट उड़ाता है।
जिसके बलिदानों को जग,
कोटि कोटि गोहराता है।
ऐसे देशभक्त वीरों को,
जन जन शीश झुकाता है।
उसकी शोणित जब उबले,
बैरी को धूल चटाता है।
मातृभक्ति रग रग में जिसके,
अरि का बलिदान चढ़ाता है।
त्याग सुख सुविधाएं अपनी,
जो विजय जश्न मनाता है।
ऐसे देशभक्त वीरों को,
जन जन शीश झुकाता है।
हिम के चटटानों में बैठ,
जो अपना लहु पिघलाता है।
ऊँचे शैल शिला में जो,
दम अपना फुलाता है।
खोट नहीं सेवा में जिसके,
झट अपना सर भी कटाता है।
ऐसे देशभक्त वीरों को,
जन जन शीश झुकाता है।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.