देवदूत
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कल रात देवदूत मेरी छत पर उतरा और बोला मुझसे , ‘ माँग क्या माँगना है ?’
मैंने कहा , “मेरी संतान सुखी रहे ।”
“ तथास्तु । और ? “ उसने हंस कर कहा ।
“ मेरे परिवार का स्वास्थ्य अच्छा रहे, हमें धन की कभी कमी न हो , आपस में स्नेह और विश्वास बना रहे ।” मैं जल्दी जल्दी बोल गई ।
“ ज़रूर “ वह फिर हंस दिया, “ अभी मेरा मन नहीं भरा , कुछ और माँगो ।” उसने हाथ उठाकर कहा ।
“ तो देवदूत, यह सब मेरे भाई, बहन , मित्रों को भी मिले । “
“ निश्चय ही, यह तो तुम्हारे ही सुख का भाग है ।पर अभी मेरे पास बहुत कुछ है , मैं फिर कभी तुम्हें मिलूँ न मिलूँ , आज और माँग लो ।”
“ तो मेरे राष्ट्र को संपन्न कर दो ।”
“ ज़रूर यह भी तो तुम्हारी ही संपन्नता से जुड़ा है। कुछ और माँगो , मेरे पास कुछ पल तुम्हारे साथ शेष हैं ।”
मैं यकायक प्रार्थना के भाव से भर उठी , “ तो देवदूत समस्त संसार को सुख, शांति, आनंद से भर दो । “
देवदूत हंस दिया, “ अरे मूर्ख , तुम्हें किसी ने बताया नहीं कि तुम्हारा सुख और संसार का सुख एक ही है, तुम यदि मुझसे पहले वहीं माँग लेती तो तुझे स्वयं का सुख स्वयं ही मिल जाता , और इस बचे हुए समय में मैं तुम्हें ब्रह्मांड के रहस्य जानने का वरदान भी दे देता, अब मेरा समय हो गया है और मैं जा रहा हूँ ।”
“ भूल हो गई मुझसे, परन्तु मुझे मेरे वरदान तो मिल जायेंगे न? “
“ क्यों नहीं , यह सब तो तुम्हारे अपने हाथ में है , कभी स्वयं के और दूसरों के हितों में अंतर मिटा कर तो देखो ।”
देवदूत जैसे आया था वैसे चला गया , और मैं निस्तब्ध खड़ी रही ।
शशि महाजन- लेखिका