देख रंग उनके गिरगिट भी हैरान है
देख रंग उनके गिरगिट भी हैरान है
बतंगड़ भी उनसे परेशान है
इतनी जल्दी तो मैं रंग बदलता नहीं
बिना बातों के बतंगड़ बनाता नहीं
निष्ठा भी इन से हलकान है
बदले जाने से हर पल, वह सुनसान हैं
फटी आंखें दुपट्टे की रह गईं
एक गले में डले हैं दुपट्टे कई
उनके भाषण से, भाषा भी रह गई है दंग
बोली नेताजी मुझको, करो न अब तंग
इतनी तेजी से मैं न बदल पाऊंगी
रूप बहरूपिया सा न धर पाऊंगी
भोली जनता की कुछ तो करो अब शरम
मत कुर्सी को बेंचो, जमीर और धरम