देख के लाश मेरी
देख के लाश मेरी चीखकर के उसने कहा
ये वो नहीं है जिसे मैने कभी चाहा था
वो तो मुस्कान को होंठों पे सदा रखता था
भूल जाती थी मैं गम ऐसी अदा रखता था
मुझे बाँहों में वो भर लेता था सलीके से
टूट जाती थी हदें ऐसा नशा रखता था
मैं खड़ी सामने चुपचाप पड़ा है फिर भी
ये वो नहीं है जिसे मैने कभी चाहा था
खुशी में आँख से धारें भी चली आती थी़
रश्मियाँ ले के सितारे भी चली आती थीं
वो अकेला कभी आया ही नहीं पहलू में
साथ में उसके बहारें भी चली आती थीं
मगर है आज खिजाँ हाथ पकड़कर बैठी
ये वो नहीं है जिसे मैने कभी चाहा था
राह चलते हुए हाथों को पकड़ लेता था
मिरे डर को वो यूँ पंजों में जकड़ लेता था
चाहता था वो मुझे टूट-टूट कर के यूँ
के मिरे वास्ते दुनिया से भी लड़ सकता था
छोड़कर जायेगा तनहा भला मुझे कैसे
ये वो नहीं है जिसे मैने कभी चाहा था
ये वही हाथ हैं आँसू जो पोछ देते थे
वही हैं पैर जो खतरों पे रोक देते थे
हाँ वही बाँहें है जिनमें गुजारी शब़ मैने
हैं वही होठ जो हर ग़म को सोख लेते थे
वही पलकें, वही जुल्फ़ें,वही च़हरा है मगर
ये वो नहीं है जिसे मैने कभी चाहा था