देख कर दशहरे का रावण
देख कर दशहरे का रावण
मन हुआ फिर से अपावन
उठ रहा प्रश्न बार बार
जलकर भी उठ जाता है क्यों ये हर बार
जा रहा था जब देखने रावण वध
थी दुविधा पहुचते तक
देखा विहंगम दृश्य सदन में
ह्रदय परिवर्तन हुआ क्षण भर में
जब उसके नयनो को पढ़ा
कह रहा था कुछ इस तरहा
कब तक जलायेगा मेरे पुतले को
जश्न मनायेगा दिखावे का
पूछ अपने दिल से सच सच
क्या सही और क्या गलत
घर घर रावण आज बसे है
कितनी सीताओ के प्राण जले है
दहेज़ की मार से वो मरी है
वृहशि दरिंदो की भेट चढ़ी है
फर्जी बाबाओ ने अस्मत लूटी है
पापियो ने कितनी कोख फूंकी है
और क्या बताऊ तू सुन न पायेगा
मैं कलयुग का रावण बोल रहा हु
आज तो तू सिर्फ पुतला ही जलायेगा
सुनकर रावण की बात
मैं स्तब्ध रह गया
जैसे मेरे ह्रदय में ही कोई पुतला जल गया
सोच सोच मन हुआ अकिंचन
क्षमा मांगता रावण से उसी क्षण
हाय कोई सोचता नहीं समाज हुआ कितना बुरा
कितने रावण छिपे है राम के नकाब चुरा
मारना है तो उन्हें मारो
जलाना है तो उन्हें जलाओ
जिनका नकाब उतारना बाकी है
बाकी सब तो सिर्फ दिखावा ही है
असली रावण मरना तो अभी बाकी है।।