देखो रवानी मिल गई
ठहरे से इस जीवन को , देखो रवानी मिल गई
जैसे सूखे पेड़ को फिर से जवानी मिल गई
अब तलक ये ज़िन्दगी , बस अंधेरों में कैद थी
लेकिन तुम्हारे प्यार से नई ज़िन्दगानी मिल गई
शुक्रिया कैसे अदा कुछ , लफ़्ज़ों में हो पाएगा
कुछ कहा जो आज तो ,शायद गला भर आएगा
बस मेरी आँखों से ही इस दिल की बातें जान लो
इनमें तुम्हे एक आदमी फिर ज़िंदा सा मिल जाएगा
आज फिर से इन परों में संचरित , कुछ हो गया
वीरान सी दिल की ज़मी पे खुशियाँ कोई बो गया
अब अपने हिस्से का भी कुछ आसमाँ होगा कहीं
ये सोचकर ही कुछ उड़ानों , में कहीं मैं खो गया
सुन्दर सिंह
21.12.2016