देखे सुने हैं किस्से कितने ही मयकशी के।
ग़ज़ल
221……2122……221…..2122
देखे सुने हैं किस्से कितने ही मयकशी के।
सो दूर ही रहे हैं हम इसकी दिल्लगी से।
पढ़ने की उम्र जिनकी वो काम कर रहे हैं।
कुचले गये है सारे अरमान जिंदगी के।
तुमने मुझे रखा है, दिल में बना के कैदी,
लो जिंदगी ये कर दी अब नाम आप ही के।
बच्चों को हँसता देखूँ, रोएं तो फिर हँसाऊं,
अब छोड़ ही दिए हैं सब काम बंदगी के।
सब जिंदगी गुजारी खाने कमाने में ही,
अब सोचता करूँ वो जो काम हों खुशी के।
रंगीनियां जहां की भाती तुम्हें सदा ही,
मैं तो रहा हवाले जीवन मे सादगी के।
प्रेमी बनो बना लो बस प्रेम शाश्वत है,
सब बन रहे हैं जाने क्यों यार दुश्मनी के।
……..✍️ प्रेमी