देखती दुनिया के वो क्या मांगता है
देखती दुनिया के वो क्या मांगता है
वक़्त गुज़रे और अच्छा मांगता है
जब उसे मालूम वादा झूट होगा
बेवफ़ा से क्यूँ वो वादा मांगता है
बैठ जाता ख़्वाब पलकों पर सजाकर
इसको मौला कर दे सच्चा मांगता है
पूछता है सामने रखकर के पत्थर
आइने से झूट सच का मांगता है
जो कभी तूफ़ान से डरता नहीं था
आज कश्ती से किनारा मांगता है
दिल के जज़्बातों की कब परवा किसी को
क्या कहें हर कोई पैसा मांगता है
माल आया तो उड़ीं अनमोल नींदें
मालोज़र ही क्यूँ हमेशा मांगता है
जब उसे मालूम जीवन चार दिन का
क्यूँ वो सामां औ’र ज़ियादा मांगता है
हर किसी को वक़्त से पहले न मिलता
फिर भी क्यूँ ‘आनन्द’ जैसा मांगता है
– डॉ आनन्द किशोर