#देकर_दगा_सभी_को_नित_खा_रहे_मलाई……!!
#देकर_दगा_सभी_को_नित_खा_रहे_मलाई……!!
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दो पक्ष कर रहे हैं, बिन बात की लड़ाई।
देकर दगा सभी को, नित खा रहे मलाई।।
सेवक बता सभी से,
ओ शीश का झुकना।
मतलब निकालने को,
हर दिन नया बहाना।
पद पा गये प्रतिष्ठा, करते न सेवकाई।
देकर दगा सभी को, नित खा रहे मलाई।।
है पाँच वर्ष का ही,
यह खेल सब तमाशा।
इनके लिए है रबड़ी,
जन- जीव में हताशा।
छल- छद्म ढाल इनका,धोखाधड़ी कमाई।
देकर दगा सभी को, नित खा रहे मलाई।।
जनता सुधा समझ ही,
नित पान कर रही है।
वह कालकूट का ही,
गुणगान कर रही है।
बदकार से भला क्यों, तुम चाहते भलाई।
देकर दगा सभी को, नित खा रहे मलाई।।
निज बेंच दी हया को,
अवशेष बेचना है।
मन लालसा नवल यह,
अब देश बेचना है।
सबको लड़ा रहे हैं, दे धर्म की दुहाई।
देकर दगा सभी को, नित खा रहे मलाई।।
कबतक दगा सहोगे,
निज बोध को जगाओ।
जो भ्रष्ट आज नायक,
उनको सबक सिखाओ।
विश्वासघातियों से, भयभीत हो न भाई।
देकर दगा सभी को, नित खा रहे मलाई।।
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✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर) , पश्चिमी चम्पारण, बिहार