दूसरे दर्जे का आदमी
पहले दर्जे के इस चक्कर में
बन गया दूसरे दर्जे का आदमी !
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बना
खुद बन गया रोबोट का डमी !!
सिद्धहस्त सर्जन से भी नही
अब रोबोट से कराता सर्जरी !
चैट जी पी टी के आगे तेरी
दक्षता रह गई धरी की धरी !!
तेरा शतरंज का विश्वविजेता भी
‘डीप ब्लू’ कंप्यूटर से हार जाता !
अब बिना इस कम्प्यूटर जी के
कोई उत्तर,गणना न कर पाता !!
तू जो गुरु था गुड़ ही रह गया
चेला चीनी,गूगल गुरु हो गया !
और यह देखो ‘अलेक्सा’ तो
बस बोलते ही शुरू हो गया !!
काम-धाम की तो बात छोड़
बोलने को भी बना दी ‘सना’ !
क्यों अब पूरी तरह से तुम
खुद को ही गुलाम रहा बना !!
तो क्या एक दिन ये तेरी
मशीनें सारे काज करेंगी !
पर लगता है जल्दी ही
मशीनें मनुज पे राज करेंगी !!
फिर बनेगा हे मानवश्रेष्ठ !
तुम दूसरे दर्जे का आदमी !
नर से नारायण के बदले
बनेगा नर से निरा खादिमी !!
बांध ले विज्ञान को भी अब
नियम नैतिकता की डोर से !
नही तो कभी भी निकलेगा
भस्मासुर किसी भी ओर से !!
‘साइंस इज अ गुड सर्वेन्ट
बट बेड मास्टर’ को अब मान !
तभी बचेगा पुरूषार्थ का ताज
ये श्रेष्ठ प्राणी होने का सम्मान !!
~०~
मौलिक एवं स्वरचित : रचना संख्या -०५
जीवनसवारो,मई २०२३.