*दूर के ढोल होते सुहाने*
दूर के ढोल होते सुहाने
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दूर के ढोल होते हैँ सुहाने,
क्या बात जाने ये दीवाने।
जिसके दर जा कर बजते,
वो ही ढोल की तान् जाने।
कैसे भी हो ढोल – नगाड़े,
बजाने वाला सुर पहचाने।
मनपसंद ढोल मिल जाए,
डंके की चोट बजे निशाने।
ढीला ढाला ढोल मिले तो,
डूब जाते बड़े – बड़े घराने।
ढोल की रमज ना समझे,
आ जाए है अक्ल ठिकाने।
ना सुर ताल ना लय मिले,
ढोल जो हों बहुत बेगाने।
किस्मत वालों को मिलते,
ढोल रूपी बड़े नजराने।
मिलते रहते ढोल निराले,
कभी नये तो कभी पुराने।
ढोल ढोल की बात अलग,
जिस तन लगे वो ही जाने।
मनसीरत भी ढोल बजाए,
बन कर पागल से मस्तानें।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)