दूरियाँ-नज़दीकियाँ
दूरियाँ-नज़दीकियाँ
कोई पास रह कर भी दूर तो कोई दूर रह कर भी पास है,
दूरियाँ-नज़दीकियाँ महज़ अहसास हैं,
मीलों का पैमाना केवल गणित का हिसाब है,
कहाँ सुलझे यह उलझन, नित दिन उलझे यह उलझन,
क्यूँ कोई इतना दूर तो क्यूँ कोई इतना पास है,
नज़दीकियाँ दूरियाँ बन जाए,
दूरियाँ नज़दीकियाँ हो जाएँ यह भी इत्तेफ़ाक है
तो क्यूँ है डर दूर हो जाने का,
जो नज़दीक है वो भी कहाँ पास है,
दूरियाँ-नज़दीकियाँ महज़ अहसास हैं ।