दुश्मनो को सन्देश
“न जाने कितने जयचंद छिपे हुए हैं ,
इस भारत की सीमा में !
जो तुमको हिम्मत देते हैं ,
हमको आँख दिखाने में !!
महबूबा मुफ़्ती हो या भटकल ,
या ओवैसी सी हो मंद अकल!
जिनकी अदभुत वतन परस्ती से !
दुश्मन हो जाता हो गद गद !!
अरे ऐसी कैसी अभिव्यक्ति ,
जो जिन्ना से जा मिलती हो !
और ऐसी कैसी आज़ादी जो ,
जो देश तोड़के मिलती हो !!
इतनी एहसान फरामोशी भी ,
तुम ढूंढ कहाँ से लाते हो !
खाते तुम भारत वर्ष का हो ,
गाते तुम पाकिस्तान का हो !!
लगा लो सारे दाव पेंच तुम ,
भारत को फिर से झुलसाने का !
कन्याकुमारी से काश्मीर तक ,
फहरेगा केवल भारत का झण्डा !!
तोड़ दिया है तीन सौ सत्तर ,
अब पीओके भी हमारा है !
अगर शांत न बैठे अब तो ,
अगला नंबर तुम्हारा है!!
कश्मीर छीनने आये थे तुम ,
कटोरा पकड़ के बैठे हो !
ये ४७ का भारत नहीं ,
जो आँख बंद कर बैठा हो !!
शांतिदूत हम बहुत बन चुके ,
अब संपूर्ण क्रांति की बारी है !
दया की भीख भी बहुत दे चुके ,
अब लाहौर कूच की बारी है !!
जर्जर जिसकी अर्थ व्यवस्था ,
और विश्व में पड़ा अकेला है !
बिलख रहा है कश्मीर पे ,
जो गधे बेच कर जीता है “!!
देख पलट के इतिहास जरा तू ,
कैसे मुँह के बल गिर जाता है !
दिल्ली से सीधे लाहौर छीन ले ,
अब हममे इतनी क्षमता है !!”