“ दुमका संस्मरण ” ( विजली ) (1958)
डॉ लक्ष्मण झा” परिमल ”
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पर्वतों से घिरा हमारा दुमका प्रारंभ में प्रकाश से बँचित रहा ! याद है मुझे जब 1958 में मैंने नगरपालिका के डांगालपाड़ा ( हटिया स्कूल ) प्राथमिक स्कूल में पहली क्लास में प्रवेश लिया तो विजली कहीं नहीं थी ! दुमका बाजार के हरेक दुकानों में सिर्फ शाम 6 बजे से 9 बजे तक ही विजली की जरूरत होती थी ! मुख्य दुकानों में जनरेटर का कनेक्शन लिया गया था ! एक आना एक बल्ब जलाने के लिए दिये जाते थे ! उनदिनों दुमका में एक ही “ज्ञानदा सिनेमा हॉल” था ! वहाँ पर भी जनरेटर चलाए जाते थे ! ऊँच्च पधाधिकारियों के दफ्तर में हाथ वाले पंखा डोलाया जाता था ! दूर एक चपरासी एक लम्बी डोर को खींचता रहता था और छत पर टंगा एक विशाल पंखा हिलता रहता था ! पर एक बात तो थी कि दुमका जंगलों से घिरा था और यहाँ की हवा में ठंठक रहती थी ! मौसम सुहाना लगता था ! शाम होते- होते चिडिओं की चहचाहट की आवाजें और आदिवासी महिलाओं के मधुर गीतों से सारा प्राकृतिक झूम उठता था ! कहीं शोर नहीं और ना प्रदूषण था !
हरेक मुहल्ले में नगरपालिका की ओर से एक पेट्रोमेक्स जलाए जाते थे ! और उसे लकड़ी के पोल पर लटकाए जाते थे ! शुक्ल पक्ष में यह नहीं जलाए जाते थे ! सिर्फ दो घंटे अँधेरीया रात में ही जलाए जाते थे ! लोगों के घर डिबिया ,दीपक और लालटर्न ही जलाते थे ! संध्याकाल में सब के सब अपने हमउम्र वालों के साथ मिलते , खेलते ,गाते और मौज मानते थे ! बड़े बुजुर्ग खगोलीय ज्ञान देते! रात में दिशा का ज्ञान देते थे और तारों की परिभाषा और उनके नामों को बताते थे !
हम नगर के तमाम लोगों को जानते और पहचानते थे ! डाकिया अपने क्षेत्र के लोगों का नाम जानते थे ! भूले हुये अतिथिओं को उनके मंज़िल तक बच्चे -बच्चे तक पहुँचा देते थे !
आज दुमका विजिलिओं से जगमगा रहा है ! हम प्रगति के शिखर पर पहुँचते जा रहे हैं पर अपनों से दूर होते जा रहे हैं !
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डॉ लक्ष्मण झा” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
07.08.2023