दुनिया में कहीं से,बस इंसान लाना
न जाने मुझे, ये क्या हो गया है?
मेरा मानस न जाने, कहां खो गया है?
तुम्हें गर मिले, तुम मुझे भी मिलाना
कहीं भी मिले, तुम उसे ढूंढ लाना
जरूरत दुनिया को, उसकी बहुत है
दिखता है इंसान,रिस्की बहुत है
पहचान करने में,दिक्कत बहुत है
कहता है कुछ और,करता अलग है
दिखता है कुछ और, होता अलग है
मिल जाए खालिस, मुझे भी मिलाना
दुनिया में कहीं से,बस इंसान लाना
धर्म जाति के रंग में, जो न हो अंधा
इंसानियत के रंग में, रंगा हो वो वंदा
सत्य प्रेम करुणा, और दिल में दुआ हो
सभी के लिए,दिल में रखता दया हो
मिले कहीं तुमको, मुझे भी मिलाना
दुनिया में कहीं से,बस इंसान लाना
सुरेश कुमार चतुर्वेदी