दुख
दुख कहने के लिए नहीं होता,
ये तो सहने के लिए होता है।
ये खज़ना तो बेहद अपना है,
इसे बांट पाना सिर्फ सपना है।
खुशियों में शरीक होते लोग,
साथ निभाते जब तक सुयोग।
गम तो बेहद निजी होता है,
व्यक्ति अकेले में रोता है।
जो तुम दुख बांटने जाओगे,
रिश्ते नाते भी यहां गंवाओगे।
इस जग में कोई साथी नहीं,
प्रेम की अब वो थाती नहीं।
दिखावे की ये दुनिया,
अजब हुआ ये संसार है।
भावना यहां बेबस हुई,
रिश्ते भी लगते लाचार हैं।
झूठे लोग हैं, झूठी रवायतें हैं।
ऊपर प्रेम, भीतर अदावतें हैं।
सुख में जो साथ निभाते हैं,
वक्त आने पर आंख चुराते हैं।