दुखों का भार
राष्ट्र पर अब भी दुखों का भार है।
दिल गरीबी की वजह से क्षार है।
दिख रही शोषण -अशिक्षा की कसक।
कहें कैसे, अब न अत्याचार है?
पं बृजेश कुमार नायक
राष्ट्र पर अब भी दुखों का भार है।
दिल गरीबी की वजह से क्षार है।
दिख रही शोषण -अशिक्षा की कसक।
कहें कैसे, अब न अत्याचार है?
पं बृजेश कुमार नायक