दुखता दिल
कूड़ा जी औ बुधि-सागर में
थोड़ा यौवन के आँचल में
बढ रही व्याधियाँ-काम-दोष
शोषण सद्आत्मा के घर में
पौरुष बोलूँ या पागलपन
आँगन में चीख सुनी मैंने
छल-ईर्ष्या-दंभ दोपहर की
चल रही हवा जब साँय-साँय
दुष्कर बचना ,अतिशय मुश्किल
जीवात्मा दिखती कुछ चुटैल
दिख रहा न सुखमय साहिल है
जीवन है या दुखता दिल है
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता