दुआए
वो असर होता है दुआओं में,
कि दवा भी पीछे रह जाती है।
लेकिन आज कल इतना वक्त ही नहीं,
दुआ देने के लिए मां दरवाजे पर ही खड़ी रह जाती है।
चरण स्पर्श करना तो भूल गए,
आशीर्वाद की जरूरत न रही।
घुटनों तक आकर सब रुक गए।
आदर सम्मान की बात न रही,
आदमी और औरत की पहचान न रही।
मां – बेटी के रिश्ते कि कोई कदर न रही,
पिता – पुत्र में आशीष कि झलक न रही।
मोन हो गए हैं सब,
दुनिया में अब अपनों कि कदर न रही,
मां तो फिर भी दुआ दे ही देती है,
पर संतान को इसकी जरूरत न होती है।