दीवारों के भी कान होते हैं
******* दीवारों के कान होते हैं *********
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जुबां को रोकिए बोलने से नुकसान होते है
संभल के बोलिए दीवारों के कान होते हैं
कुछ भी कहने से पहले ज़रा सा मुख में तोलो
शब्द तीर समान वापिस नहीं कमान होते हैं
शब्दबाण सदा ही करते हैं मन पर घाव भारी
जब बिगड़ जाएं संबंध राह सुनसान होते है
अपनों की परवाह में जो करें सर्वस्व समर्पण
उनके लिए अंत्य बन्द सारे मकान होते हैं
सलाहकार सच्चाई से होतें सदा कोसों दूर
उनके निजशाला में जल रहे शमशान होते हैं
गैरों आगे नतमस्तक होते देखें सरेआम
घर के शेर आंगन में ही तो बलवान होते है
सुखविंद्र किससे बयां करे हाल ए दास्तान
प्रभावित हरेक के यहाँ पर अरमान होते हैं
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)