दीवारें ऊँचीं हुईं, आँगन पर वीरान । दीवारें ऊँचीं हुईं, आँगन पर वीरान । साँकल की आवाज को, तरस रहे हैं कान ।। ✍️ अरविन्द “महम्मदाबादी”