दीप ज्योत
दीप ज्योत
कह दो अंधेरों से कहीं और जा बसे
यहाँ तो रोशनी का सैलाब आया है
हर खिड़की चौखट पर जलता चिराग
मोहब्बत का पैग़ाम लाया है
नफ़रतों को जला,अंधकार मिटा
आएगा उज्जवल सुनहरा कल
बुझने न देना उम्मीदों का दीया
साहस व संयम रखना हर पल
दीपक है येआशा का ज्ञान का
आलोकित करता गहन तम
प्रतीक है हर्ष का उल्लास का
कहता साथ हैं तो फिर क्या ग़म
झिलमिला रहा हर झरोखे से
जग अग्रसर प्रकाश की ओर
कारी निशा का गमन हो रहा
थामे रखना नई सुबह की डोर
रेखा