दीप की आस
माना कि मैं सूरज नहीं , पर
दिया तो हूँँ…
अपनी लौ की लगन में
मस्त जिया तो हूँँ
है मालूम मुझे कि
अँँधियारा सारे जहाँँ का , मैं हर नहीं सकता
हर घर में उजाला , मैं भर नहीं सकता
मेर जीवन छोटा औ’ रूप लघु है , पर
क्या लघुता के कारण मैं जलना छोड़ दूँँ ?
अपने कर्म के पथ पर चलना छोड़ दूँँ ?
न मैं थका हूँँ , न हारा हूँँ
न मैं दीप बेचारा हूँँ
मैं तो उम्मीदों के गगन में
चमकता सितारा हूँँ
एक चमकता सितारा हूँँ ….।
(मोहिनी तिवारी)