दीपावली
कुण्डलिया
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राधा आगे बढ़ रही, कर में लेकर दीप।
स्नेह भाव मन में लिए, आए कृष्ण समीप।
आए कृष्ण समीप, राधिका मन मुस्काए।
हर्ष भाव के साथ, मगर कुछ कुछ सकुचाए।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, दूर होती हर बाधा।
जहां कृष्ण के साथ, बसी हो मन में राधा।
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शुभकर भक्ति भाव का, छलका सिंधु अथाह।
धन वैभव की आस है, मन में है उत्साह।
मन में है उत्साह, पर्व दीपों का पावन।
सज्जित हैं घर द्वार, महकते सबके आंगन।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, हुए जगमग सबके घर।
जलते दीप अनेक, भावनाओं के शुभकर।
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रात अमावस दे रही, हमको यह संदेश।
दीप जलाओ हर जगह, नहीं रहे तम लेश।
नहीं रहे तम लेश, पर्व दीपों का आया।
लेकर नयी उमंग, सभी का मन हर्षाया।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, भक्ति का पान करें रस।
वैभव का वरदान, दे रही रात अमावस।
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खेल रही हैं बेटियां, खूब मज़े के साथ।
मिलजुल आगे बढ़ रही, लिए हाथ में हाथ।
लिए हाथ में हाथ, मस्त बचपन है जिनका।
बालसुलभ मुस्कान, बना आभूषण इनका।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, धरा पर स्वर्ग यहीं हैं।
जहां लिए आनंद, बेटियां खेल रही हैं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य