दीदार
शीर्षक:दीदार
इंतजार तेरे दीदार का…
हंसी आ सकती है आज भी मुझको
तुम्हे याद करके जब तुममेरी बात को सुनकर
हस दिया करते थे तुम्हे क्या मालूम था कि मैं
तरसती थी तेरे इंतजार में बस दीदार को
आज भी याद करती हूँ वो बातें पुरानी और हैं मुझे
इंतजार तेरे दीदार का…
तुम्हें दिखा नहीं सकती हूं मैं भाव अपने मन के
लगी है आंसुओं से शर्त मेरी कि याद करुँगी पर
इंतजार के दर्द में बहने नही दूँगी तुमको
आंसू को पी जाऊंगी अंदर ही बस
और व्यतीत बीता समय याद करती हूँ बस
इंतजार में तेरे दीदार को…
और यादे तेरी मुझे गिरफ्त में कर ले परेशान करती हैं
मगर कुछ कसम सी दिल ने खा रखी है मेरे
कि भले ही दर्द बहे पर इंताजर रहेगा खुशी भरा
आंखों में इंतजार रहेगा हर पल तेरा
आएगा मेरी पनाह में तू मुझे तो बस
इंतजार तेरे दीदार का…
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद