दीदार को तरसे
** दीदार को तरसे **
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तेरे दीदार को तरसे
तेरे निहार को तरसे
तेरे पास में रहकर भी
तेरे साथ को हैं तरसे
तुझसे कोई बात न हुई
मुलाकात को भी तरसे
खोये हम तो अंधेरों में
नव प्रभात को हैं तरसे
छिपे कहाँ हो बादलों में
पहली बरसात को तरसे
नजराने मिले जिंदगी में
तेरी सौगात को तरसे
तेरे बिन बेसुरी जिंदगी
हैं सुरताल को भी तरसे
सुखविंद्र तो है अलबेला
रहे एतबार को तरसे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)