दिसम्बर की ठंड़
ओढ़ाया तुमने हमदर्दी का कम्बल
सौहार्दपूर्ण गर्माहट के संग
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़
मूंगफली सी चटकती बातों ने
तिल तिल ख्वाहिशें उघाड़ी
जिसमें घोल दिए फिर
गुड़ जैसे संबंध
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़
कुहराते ख्यालों को
आशाओं ने भेदा
लगाव के अलाव ने दिखाए
आत्मीयता के ढंग
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़
बर्फ सी पड़ती शंकाओं पर
चमकी आश्वासनों की धूप
खिलते बागों में ले आए
दुनियादारी के रंग
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़
तितलियों सी बेपरवाह ज़िदगी
उड़ती गई फूल फूल
ठौर वहाँ जहाँ थकते पंख
या ठहराता मकरंद
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़