Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Jan 2020 · 5 min read

दिशाहीन छात्र राजनीति

राष्ट्र के रचनात्मक प्रयासों में किसी भी देश के छात्रों का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान होता है। समाज के एक प्रमुख अंग और एक वर्ग के रूप में वे राष्ट्र की अनिवार्य शक्ति और आवश्यकता हैं। छात्र अपने राष्ट्र के कर्णधार हैं, उसकी आशाओं के सुमन हैं, उसकी आकांक्षाओं के आकाशदीप हैं। राष्ट्र के वर्तमान को मंगलमय भविष्य की दिशा में मोड़नेवाले विश्वास के बल भी हैं। देश की आंखें अपने इन नौनिहालों पर अटकी रहती हैं। समाज के इस वृहद् अंश की उपेक्षा न तो संभव है और न किसी भी मूल्य पर होनी ही चाहिए। उचित और अनुकूल संरक्षण में इन सुकुमार मोतियों को अखंड प्रेरणा-दीप, साधना-दीप में बदला जा सकता है।

अनुकूल और विवेकसंगत नेतृत्व के अभाव में ये विध्वंस और असंतोष की आसुरी वृति से ग्रस्त हो उठते हैं। आजादी के पहले इनकी एक भिन्न भूमिका थी। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने इनकी शक्ति का उपयोग विदेशी सत्ता के विरोध में किया। आह्वान और संघर्ष के पुनीत अवसरों पर छात्रों ने अपनी क्रांतिकारी भूमिका निभायी। आजादी के विभिन्न कारणों में समूह-शक्ति का महत्व सबसे प्रमुख रहा। समूह के लहराते सागर में छात्रों ने अद्भुत योगदान दिया। उसी समूह-शक्ति की प्रचंड हुंकार से अंग्रेजों की सत्ता का सिंहासन हमारे देश से डोल गया और एक दिन उन्हें दुम दबाकर यहां से भागना पड़ा।

स्वतंत्रता की किरणों ने जब हमारी धरती को चूमा तो उसके आलोक में हमें वृहद् समस्याओं की मूर्तियां दिखलायी दीं। आज हमारा राष्ट्र विभिन्न समस्याओं के कुहर-जाल में घिरा हुआ विकास और सुरक्षा के आलोक के लिए सतत् संघर्ष कर रहा है। न सामूहिक रूप से रचनात्मक प्रयास हो रहा है और न भावात्मक एकता के अटूट रज्जु में हम बंध पाते हैं। नतीजा यह है कि हम अभी भी अपनी दुर्बलता से ऊपर उठकर एक सशक्त राजनीति का ठोस संबल लेकर राष्ट्र निर्माण के गुरुत्तर कार्य को आगे बढ़ा सकने में असफल हैं।

राजनीति आज के सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन की एक अनिवार्य रेखा बन गई है। इसके स्पर्श से न तो यंत्रों की हलचल में डूबा हुआ शहर बच पाया है और न शांत प्रकृति के प्रांगण में बसे हुए गांव ही। यह युग की एक अवश्यम्भावी चेतना बनकर हम सभी पर छा गई है। फिर शिक्षा की साधना में रत छात्र-समुदाय इससे अछूता कैसे रह सकता है? समूचे देश में स्कूल, कॅालेज, विश्वविद्यालयों में छात्रों का उमड़ता हुआ असंतोष एक समस्या के रूप में व्यवस्थित हो गया है। साधना की सही दिशा नहीं प्राप्त हो सकने के कारण उनका असंतोष रचनात्मक रूप नहीं ले पाता और वे गलत ढ़ंग से राजनीति की विषम ग्रंथियों में उलझ जाते हैं।

विभिन्न राजनीतिक दल के नेता उनके असंतोष को अपने स्वार्थ के लिए मोड़ देते हैं। फलतः छात्रों की राजनीति विद्रोह और विध्वंस की, विरोध और हड़ताल की, अराजकता और अनुशासनहीनता की राजनीति बन जाती है। उनके स्वरों में उत्तेजना रहती है पर वह स्वस्थ सृजन की प्रेरणा नहीं बन पाती और न उनमें रचनात्मक अभियान ही रहता है।

आजादी के पहले छात्रों की राजनीति का एक भव्य लक्ष्य था। राष्ट्रीय आंदोलनों में छात्रों की कुर्बानी का भी शानदार इतिहास है। उनका गौरवपूर्ण योगदान है। परन्तु आजकल छात्रसंघ अपराधियों और लंपट तत्वों के मंच बन गए हैं और परिसर के शैक्षणिक माहौल को बिगाड़ने के साथ-साथ कानून-व्यवस्था के लिए भी गंभीर समस्या बन गए हैं। छात्र राजनीति में गिरावट और दिशाहीनता के कारण अपराधी, लंपट, ठेकेदार, जातिवादी, अवसरवादी और माफिया तत्वों की न सिर्फ घुसपैठ बढ़ी है बल्कि मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के छात्र संगठनों के जरिए परिसरों के अंदर और छात्रसंघों में उनका दबदबा काफी बढ़ गया है।

परिसरों की छात्र राजनीति में बाहुबलियों और धनकुबेरों के इस बढ़ते दबदबे के कारण आम छात्र न सिर्फ राजनीति और छात्रसंघों से दूर हो गये हैं बल्कि वे छात्र राजनीति और छात्रसंघों के मौजूदा स्वरूप से घृणा भी करने लगे हैं। यही नहीं, छात्र राजनीति और छात्रसंघों के अपराधीकरण के खिलाफ आम शहरियों में भी एक तरह का गुस्सा और विरोध मौजूद है। जाहिर है कि शासकवर्ग छात्र समुदाय और आम शहरियों की इसी छात्रसंघ विरोधी भावना को भुनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन इस आधार पर यह मान लेना बहुत बड़ी भूल होगी कि उनका मकसद परिसरों की सफाई और उनमेंं शैक्षणिक माहौल बहाल करना है।

दरअसल, दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश या देश के अन्य राज्यों में जहां विश्वविद्यालय परिसर शैक्षणिक अराजकता के पर्याय बन गए हैं, उसके लिए छात्रसंघों को दोषी ठहराना सच्चाई पर पर्दा डालने और असली अपराधियों को बचाने की कोशिश भर है। सच यह है कि लंपट, अपराधी और अराजक छात्रसंघ एवं छात्र राजनीति मौजूदा शैक्षणिक अराजकता के कारण नहीं, परिणाम हैं। इस शैक्षणिक अराजकता के लिए केन्द्र और प्रदेश की सरकारों के साथ-साथ विश्वविद्यालय प्रशासन मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। अगर ऐसा नहीं है तो उत्तर प्रदेश और बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्ट, लंपट, नकारा और शैक्षणिक रुप से बौने कुलपतियों की नियुक्ति के लिए कौन जिम्मेदार है?

आखिर क्यों पिछले एक दशक से भी कम समय में उत्तर प्रदेश और बिहार के राज्यपाल को कुलपतियों के खिलाफ भ्रष्टाचार, अनियमितता और अन्य गंभीर आरोपों के कारण सामूहिक कार्रवाई करनी पड़ी है? क्या इसके लिए भी छात्रसंघ और छात्र राजनीति जिम्मेदार है? तथ्य यह है कि उत्तर प्रदेश सहित उत्तर और मध्य भारत के अधिकांश विश्वविद्यालय और कॅालेज परिसरों में पढ़ाई-लिखाई को छोड़कर वह सब कुछ हो रहा है जो शैक्षणिक गरिमा और माहौल के अनुकूल नहीं है। उस सबके लिए सिर्फ छात्रसंघों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

सच यह है कि बिहार और उत्तर प्रदेश सहित उत्तर और मध्य भारत के अधिकांश विश्वविद्यालय और कॅालेज परिसर शिक्षा के कब्रगाह बन गए हैं। भ्रष्ट और नकारा कुलपतियों और विभाग प्रमुखों ने पिछले तीन दशकों में परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद और राजनीतिक दबाव के आधार पर निहायत नकारा और शैक्षणिक तौर पर शून्य रहे लोगों को संकाय में भर्ती किया। इससे न सिर्फ परिसरों का शैक्षणिक स्तर गिरा बल्कि अक्षम अध्यापकों ने अपनी कमी छुपाने के लिए जातिवादी, क्षेत्रीय अपराधी और अवसरवादी गुटबंदी शूरू कर दी। परिसरों में ऐसे अधिकारी-अध्यापक गुटों ने छात्रों में भी ऐसे तत्वों को प्रोत्साहन देना और आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। कालांतर में कुलपतियों और विश्वविद्यालयों के अन्य अफसरों ने भी अपने भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर पर्दा डालने के लिए ऐसे गुटों और गिरोहों का सहारा और संरक्षण लेना-देना शुरु कर दिया.

असल में परिसरों में एक ईमानदार, संघर्षशील और बौद्धिक रूप से प्रगतिशील छात्रसंघ और छात्र राजनीति की मौजूदगी शैक्षिक माफिया को हमेशा खटकती रही है क्योंकि वह उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा साबित होता रहा है। इसलिए लड़ाकू और ईमानदार छात्र राजनीति को खत्म करने के लिए शैक्षिक माफियाओं ने परिसरों में जान-बूझकर लंपट, अपराधी, जातिवादी और क्षेत्रवादी तत्वों को संरक्षण और प्रोत्साहन देना शुरू किया है। दूसरी ओर उन्होंने छात्रसंघों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को घूस खिलाना, भ्रष्ट बनाना फिर बदनाम करना और आखिर में दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकने की रणनीति पर काम करना शुरू किया है। इसका सीधा उद्देश अपने भ्रष्टाचार पर पर्दा डालना है। किन्तु शैक्षिक माफियाओं तथा राजनीतिज्ञों को यह समझना चाहिए कि ये छात्र एक-न-एक दिन भस्मासुर की तरह उन्हीं के माथे पर हाथ फेरेंगे।

छात्रों को भी महात्मा गांधी का यह कथन स्मरण रखना चाहिए कि अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है, न संस्था या राष्ट्र ही। वस्तुतः अनुशासन ही संगठन ही कुंजी और प्रगति की सीढ़ी है। अनुशासनहीन छात्र-समुदाय से राष्ट्र की इमारत का शीराजा ही बिखर जाएगा, इसमें संदेह नहीं।

:- आलोक कौशिक

संक्षिप्त परिचय:-

नाम- आलोक कौशिक
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशित
पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 2 Comments · 493 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बहुत कुछ जान के जाना है तुमको, बहुत कुछ समझ के पहचाना है तुम
बहुत कुछ जान के जाना है तुमको, बहुत कुछ समझ के पहचाना है तुम
पूर्वार्थ
*जन्मभूमि है रामलला की, त्रेता का नव काल है (मुक्तक)*
*जन्मभूमि है रामलला की, त्रेता का नव काल है (मुक्तक)*
Ravi Prakash
चौपई /जयकारी छंद
चौपई /जयकारी छंद
Subhash Singhai
सम्मान #
सम्मान #
Anamika Tiwari 'annpurna '
मेरी आँखों से भी नींदों का रिश्ता टूट जाता है
मेरी आँखों से भी नींदों का रिश्ता टूट जाता है
Aadarsh Dubey
नया विज्ञापन
नया विज्ञापन
Otteri Selvakumar
मित्रो नमस्कार!
मित्रो नमस्कार!
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
ये वादियां
ये वादियां
Surinder blackpen
सवेदना
सवेदना
Harminder Kaur
ग़ज़ल --
ग़ज़ल --
Seema Garg
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि दुनिया में ‌जितना बदलाव हमा
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि दुनिया में ‌जितना बदलाव हमा
Rituraj shivem verma
*इश्क़ से इश्क़*
*इश्क़ से इश्क़*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
अगर दिल में प्रीत तो भगवान मिल जाए।
अगर दिल में प्रीत तो भगवान मिल जाए।
Priya princess panwar
2764. *पूर्णिका*
2764. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चुप
चुप
Ajay Mishra
"सदियों का सन्ताप"
Dr. Kishan tandon kranti
एहसान फ़रामोश
एहसान फ़रामोश
Dr. Rajeev Jain
हर कोई समझ ले,
हर कोई समझ ले,
Yogendra Chaturwedi
Maine Dekha Hai Apne Bachpan Ko...!
Maine Dekha Hai Apne Bachpan Ko...!
Srishty Bansal
शीत की शब में .....
शीत की शब में .....
sushil sarna
ये ढलती शाम है जो, रुमानी और होगी।
ये ढलती शाम है जो, रुमानी और होगी।
सत्य कुमार प्रेमी
फूल
फूल
Punam Pande
सर्वनाम
सर्वनाम
Neelam Sharma
दुनिया वाले कहते अब दीवाने हैं..!!
दुनिया वाले कहते अब दीवाने हैं..!!
पंकज परिंदा
मौज के दोराहे छोड़ गए,
मौज के दोराहे छोड़ गए,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
चलते चलते
चलते चलते
ruby kumari
बाखुदा ये जो अदाकारी है
बाखुदा ये जो अदाकारी है
Shweta Soni
2
2
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
सागर तो बस प्यास में, पी गया सब तूफान।
सागर तो बस प्यास में, पी गया सब तूफान।
Suryakant Dwivedi
प्रेरणा
प्रेरणा
Shyam Sundar Subramanian
Loading...