दिव्य कुम्भ
दिव्य कुम्भ
दिव्य कुम्भ की
बात निराली
छायी सब पर
संगम की हरियाली
स्नान ध्यान पूजा
अर्चन संगम पर
सब संतों ने प्रयागराज में
धूनी रमाली ।।
आस्था का यह
पर्व है भारी
संगम पर उमड़ी
दुनिया सारी
राम नाम के जयकारे से
गूंजे गंगा तीर
राम मंदिर बनवाने को
धर्म सभा हुई है भारी।।
कोई साधु कोई नागा
विविध भेष में आए कपाली
जय जयकार महादेव की
करते है मुनि दरबारी
भगवा रंग में रंगे सभी
जनमानस और वीर
जनम सफल को देखो
गोता मारे सब नर नारी।।
संगम घाट पर छायी देखो
कैसी छटा निराली
देवलोक भी उमड़ पड़ा
देख संगम की हरियाली
रजत चांदनी बिखर पड़ी है
संगम के अब तीर
तीनो गंगा जमुना सरस्वती की
संगम है निराली ।।
“”””””””””सत्येन्द्र बिहारी””””””””