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10 Feb 2020 · 1 min read

दिवस बीते

दिवस बीते
परायों की खातिर
हमको जीते।

वक़्त के किले
जो हमने थे जीते
लगते रीते।

खुद के होंठ
मग़र इनपर
हँसी परायी।

कितने नीचे
से किस्मत कितना
ऊपर लायी?

खून पसीने
की पूँजी से था ऐसे
व्यापार किया।

फूल सभी के
हिस्से देकर खुद
ही खार लिया।

सबको देदी
अपनी महफ़िल
तन्हाई पायी।

जीवन भर
मेहनत कर की
यही कमाई।

आज अकेले
बैठ ज़ख्म दिल के
खुद ही सीते।

दिवस बीते
परायों की खातिर
हमको जीते।

Language: Hindi
4 Likes · 379 Views
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