दिल से निकली अनौखी सदा देखिये… (‘इश्क़-ए-माही’ पुस्तक ग़ज़ल संग्रह से)
ग़ज़ल — 01
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दिल से निकली अनौखी सदा देखिये
कैसी अदभुत है उसकी कला देखिये
वक्त का हर ये लम्हां पुकारे उसे
करती फ़रियाद हर इक दुआ देखिये
चाँदनी चाँद से गुफ़्तगू कर रही
नाज़नीं की गज़ब ये अदा देखिये
आज अश्क़ों को पी नैन मदहोश हैं
इश्क़-ए-मौला में डूबी हया देखिये
हर तरफ नूर ‘माही’ का आता नज़र
आज ‘माही’ में उसका ख़ुदा देखिये
© डॉ०प्रतिभा ‘माही’