दिल से दिलदार को मिलते हुए देखे हैं बहुत
दिल से दिलदार को मिलते हुए देखे हैं बहुत
फूल जज़्बात के खिलते हुए देखे हैं बहुत
कौन आया है चमन में ये हवा की सूरत
बर्ग को शाख़ पे हिलते हुए देखे हैं बहुत
दिल के जख्मों को रफ़ू कर दे रफ़ूगर कोई
चाक दामन को तो सिलते हुए देखे हैं बहुत
संग पर अपने निशाँ छोड़े हैं क़दमों ने मगर
पांव फूलों से भी छिलते हुए देखे हैं बहुत
दिल से दिलका भी मिलन हो कोई मौक़ा आये
“हाथ से हाथ तो मिलते हुए देखे हैं बहुत”
रुक न पायी है कभी कट के बुलन्दी पे पतंग
रेशमी धागों को ढिलते हुए देखे हैं बहुत
सिर्फ़ आती नहीं “आसी” ये गुलों पर ही बहार
हम ने कांटों को भी खिलते हुए देखे हैं बहुत
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सरफ़राज़ अहमद आसी