दिल ये एक अंधेरा घर हो गया…!!!!
दिल ये एक अंधेरा घर हो गया…
पनाहों में जो था कभी उसी पर वार करके,
आज उनको भी सबर हो गया…
एक वो पीर है जो ज़र्रे- ज़र्रे में मौजूद है ऐसे,
ये दरिया मेरी आंखों का समंदर हो गया…
कभी जो मंज़िल हुआ करता था हमारी,
आज महज़ एक अधूरा- सा सफर हो गया…
दिल ये एक अंधेरा घर हो गया….!!!!
एक द्वन्द रहा-
दिल के और मेरे बीच,
हम भूलने की कोशिश करते रहे…
और वो याद दिलाता रहा,
इसी बीच बातों ही बातों में उसका ज़िकर हो गया…
उसकी यादें मेरे दिल में अब तलक महफूज़ यूँ हैं
कि उसका दीदार करने के लिए मेरा ये दिल डगर हो गया
रुखसत यूँ हुआ वो जिंदगी से-
दर्द का एक तोहफा छोड़ गया ताउम्र के लिए,
आज खुद के दिए इन दर्दों से वो बेखबर हो गया…
दिल ये एक अंधेरा घर हो गया….!!!!
बीच राह में जब साथ छोड़ा उसने,
वो वक्त कयामत- ए- कहर हो गया…
संवेदनाओं में जो कुछ वेदनाएं छिपी थी,
उन वेदनाओं के संग जीना हमारे लिए जहर हो गया…
जो कभी इन आंखों में आंसू ना आने देता था,
आज इन आंखों का आँसू उसके लिए महज़ एक खबर हो गया…
दिल ये एक अंधेरा घर हो गया….!!!!
उसका दिया गया वो ज़ख़्म,
सीने पर लगा एक खंजर हो गया…
मेरे ख्वाबों का वो आशियाना,
दुनिया के लिए एक मंजर हो गया…
जो जीत कर भी हार गया,
वो हमनशीं मेरा आज एक सिकंदर हो गया…
दिल ये एक अंधेरा घर हो गया….!!!!
कभी जिस दिल में-
हमने सींचे थे मिलकर प्यार के जज़्बात,
आज गुमशुदा दो दिलों का वो शहर हो गया…
मेरी कलम की स्याही भी दर्दों से भीगी हुई है,
आज पूछ रही है कई सवाल-
ऐ मेरे मौला कैसे उसको धोकेबाज़ी का ये हुनर हो गया…?
कभी मिले मुझे खुदा-
तो उससे ये सवाल करूँ क्यों सुन न सका तु मेरे दिल की दर्द भरी आवाज़,
इस मूरत में बसकर क्या तु भी पत्थर हो गया…
आज भी बैठी हूँ वक़्त की दहलीज़ पर,
इंतज़ार में उसके…
उसके चेहरे का दीदार मेरे लिए खुदा का दर हो गया….!!!!
जो जीवन में होना नहीं था,
मगर हो गया…
दिल ये एक अंधेरा घर हो गया….
अंधेरा घर हो गया….!!!!
– ज्योति खारी