दिल यह बंजारा
गीतिका
समझ न पाया दुनियादारी, दिल यह बेचारा।
न्योछावर कर डाला तुझपर, निज जीवन सारा।१
मचल रहा था बेटा कब से, एक खिलौना को,
बाप बहुत लाचार हुआ तो, थप्पर दे मारा।२
ठोकर खाकर भी नहीं सम्हला, करता मनमानी,
समझ नहीं पाता है पागल, दिल यह बंजारा।३
मन्दिर मस्जिद में उलझाकर, लड़वाते हमको,
रोजगार की बात करो तो, चढ़ता है पारा।४
मानव का स्वभाव है ऐसा, गलत न मानो तुम,
पास रहे तो चुभता कांँटा, दूर लगे प्यारा।५
लोकतंत्र का बिगड़ा ढांँचा, सब मनमानी है,
कहने को सरकार बनेगी, जनता के द्वारा।६
सुनो-सुनो ऐ ‘सूर्य’ सुनो तुम, कहना भी मानो,
कोशिश नहीं किया था जिसने, सिर्फ वही हारा।७
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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