दिल में कुछ रोज़
दिल में कुछ रोज़ अभी दर्द का आलम तो रहे
अपनी आँखों में भी बरसात का मौसम तो रहे
ज़ख़्म यह सोचकर भरने नहीं देता हूँ कभी
ज़िन्दगी तुझसे कोई राब्ता क़ायम तो रहे
फूल कैसे नहीं निखरेगा बताएं तो जनाब
पंखुरी पंखुरी बिखरी हुई शबनम तो रहे
फ़ासले ख़ुद ही सिमट जायेंगे रफ़्ता रफ़्ता
आपके साथ हमारा अजी संगम तो रहे
हम भी रखते हैं अना की बड़ी जागीर ‘असीम’
साहिब-ए-वक़्त का लहरा रहा परचम, तो रहे
© शैलेन्द्र ‘असीम’