दिल पे नहीं है काबू जज्बात क्या कहें अब।
गज़ल
221…….2122……221…….2122
दिल पे नहीं है काबू जज्बात क्या कहें अब।
दिल मे हों जब अँधेरे दिन रात क्या कहें अब।
पागल दिवाना सा मैं अब ढूढता उसी को,
अपने कहें या उसके हालात क्या कहें अब।
बंदे हैं सब खुदा के दूजा नहीं है कोई,
फिर धर्म जाति कोई भी बात क्या कहें अब।
उसके बिना तो जीना दुशवार हो रहा है,
बिन बादलों के होती बरसात क्या कहें अब।
कहने को मिल रही है चीज मुफलिसों को,
अपनों में बट रही है खैरात क्या कहें अब।
प्रेमी हूँ मैं तुम्हारा बस प्यार चाहता हूँ,
अब खुल के और ज्यादा भी बात क्या कहें अब।
……✍️ प्रेमी