दिल : न जाने क्या चीज़ है..
दिल,
न जाने क्या चीज़ है।
होता क्यों बेचैन है,
क्यों रहता बेताब है,
दिल, न जाने क्या चीज़ है।
किसके पीछे भागता है,
जाने क्या माँगता है,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
बंदिशों में रहता नहीं,
किसी से कुछ कहता नहीं,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
समझाने पर ये समझता नहीं,
सिर्फ़ आहें भरता है,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
कैसे मैं समझाऊँ इसको,
किसके पास बुलाऊँ इसको,
दिल,न जाने की चीज़ है।
तड़प कर रह जाता है,
धड़क कर कह जाता है,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
उलझन कैसे सुलझाऊँ मैं,
किसको गले लगाऊँ मैं,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
मन की चलती नहीं,
केवल दिल की सुनता है,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
मन को कैसे बहलाऊँ मैं,
इसको क्या बतलाऊँ मैं,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
साँसों के दो तार बजे,
इसमें एक अरमान जगे,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
बिना इसके कौन है,
जाने क्यों ये मौन है,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
हर पल में समाए वो,
हर अश्क़ में नजऱ आए वो,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
आहट है,पहचानी सी,
ख़ुशबू है,बेगानी सी,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
इतना क्यों उलझाता ये,
सुलझे न सुलझाता ये,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
एक पल भी आराम नहीं,
बस,हरदम है बात यही,
दिल,न जाने क्या चीज़ है।
अब तू तो शांत ही रह,
मुझको यूँ अशांत न कर,
दिल,बेशक एक ख़ूबसूरत नज़रिया है।