दिल जीते तन हार गए
देखके मुझे वो झट से बोली
तुम्हारी यहाँ की नहीं बोली
बोलो कहाँ से तुम आए हो
किसके यहाँ ,क्यों आए हो
क्यों देख रहे हो यूँ ऐसे तुम
जैसे आँखों से खाओगे तुम
नजर तुम्हारी यह आम नही
मेरी अक्ल करती काम नहीं
आम नहीं,कुछ खास,हो तुम
मेरे जीवन की है तलाश तुम
जिसे सोचा कभी सपनों मैं
ढूँढा था मैने जिसे अपनों में
कहीं नहीं मुझे मिल पाई थी
जो तस्वीर मन में बसाई थी
जब सहसा ही साक्षात हुआ
मेरे सपनों का आगाज हुआ
सुंदर सूरत बिल्कुल वैसी है
मोहिनी मूरत कोई जैसी है
मेरी खुशी का ठिकाना नहीं
दूर कभी कहीं तू जाना नहीं
मेरी परछाई,घना साया तुम
जैसे तरु की ठंडी छाया तुम
अब तुम दीया हो,मैं हूँ बाती
तुम हो बरसात ,मैं हूँ स्वाति
मर मिटी हूँ तेरी ख्याति पर
सोना चाहती हूँ मैं छाती पर
यह शब्द सुन हुआ हैरान मैं
बड़े दिनों से था परेशान मैं
हो नहीं रहा था यकीन मुझे
स्वप्न लग रहा था सीन मुझे
जो भी बातें मेरे दिल मे थी
वो सभी सुंदरी मुख पर थी
नजरों का जवाब नजरे थी
दिल धड़कन ना वश में थी
एक दूसरे की हम जान हुए
दिल जीते गए, तन हार गए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत