दिल चाहता है
कभी जिस मोड़ पर हम छोड़ आए थे यह जीवन
आज फिर उसी मोड़ से जीने को दिल चाहता है।
जहाँ बिखरे पड़े हैं अपनी यादों के कुछ लम्हें
आज फिर उन्हीं लम्हों को पाने को दिल चाहता है।
कि बरसों पहले हम लुटे थे किसी के नूर पर
आज फिर किसी पर लूटने को दिल चाहता है।
दीवाने बनकर फिरते थे हम किसी के प्रेम में
आज फिर उसी प्रेम को पाने को दिल चाहता है।
कभी हम रूठ कर मान जाते थे किसी के वास्ते
आज फिर किसी से मानने को दिल चाहता है।
हम उन्हें जिताने को हार जाते जान-बूझकर
आज फिर किसी से हारने को दिल चाहता है।
कभी रहते थे किसी के सपनों में रात दिन हम
आज फिर उन्हीं आँखों में बसने को दिल चाहता है।
-विष्णु प्रसाद ‘पांँचोटिया’
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