दिल गर पत्थर होता…
दिल गर पत्थर होता तो अच्छा होता,
ना ही टूटता और न ही घायल होता ।
घायल ना होता तो शिकवा न करता,
चोट पे खाकर भी मुस्कुराता रहता।
ना टूटता, न टुकड़े उसके हजार होते ,
ना ही ज़मीं बेचारा बिखरा पड़ा होता।
दिल की कमजोरी ने खिलौना बनाया,
वर्ना क्या ज़माने के हाथों खेला जाता ।
इश्क में हर इंसा क्या कामयाब है होता?
नहीं ! हर कोई जहां में खुशनसीब होता।
दौलत खरीद सकती है जिंदगी की खुशी ,
दिल तो गरीब का ख्वाब देखता है रहता।
दिल पत्थर होता तो जहां से बेखबर होता,
दुनिया की किसी शय से वास्ता ना होता ।
मगर अफसोस!हमने पाया शीशा ए दिल,
काश वो नसीब में ऐसी फितरत न पाता ।
अब तो शीशा ए दिल रखना गुनाह हो गया,
ज़िंदगी में ” अनु” की ये है सबसे बड़ी खता।