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15 Sep 2021 · 1 min read

दिल गर पत्थर होता…

दिल गर पत्थर होता तो अच्छा होता,
ना ही टूटता और न ही घायल होता ।

घायल ना होता तो शिकवा न करता,
चोट पे खाकर भी मुस्कुराता रहता।

ना टूटता, न टुकड़े उसके हजार होते ,
ना ही ज़मीं बेचारा बिखरा पड़ा होता।

दिल की कमजोरी ने खिलौना बनाया,
वर्ना क्या ज़माने के हाथों खेला जाता ।

इश्क में हर इंसा क्या कामयाब है होता?
नहीं ! हर कोई जहां में खुशनसीब होता।

दौलत खरीद सकती है जिंदगी की खुशी ,
दिल तो गरीब का ख्वाब देखता है रहता।

दिल पत्थर होता तो जहां से बेखबर होता,
दुनिया की किसी शय से वास्ता ना होता ।

मगर अफसोस!हमने पाया शीशा ए दिल,
काश वो नसीब में ऐसी फितरत न पाता ।

अब तो शीशा ए दिल रखना गुनाह हो गया,
ज़िंदगी में ” अनु” की ये है सबसे बड़ी खता।

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Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
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