दिल के काले
. दिल के काले
मलिन मन श्वेत तन ढोंगी, जो जन दिल के काले हैं।
शोषक अत्याचारी है ये,
धन बल में मतवाले हैं।
पहन के चोला सदाचार का,
प्रकोपी षड्यंत्र रचते हैं।
झूठ की फेरे माला नित,
सच का दिखावा करते हैं।
वाणी इनकी मधुर शहद सी,
अंतस जहर ही रखते हैं।
भोलों को यह लूटते नितदिन,
रिश्तों में कड़वाहट भरते हैं।
अप्सराओं सी कला है इनकी,
छल कपट कर सबको ठगते हैं।
कर्मकांड कोई नीति नहीं ,
फिर भी लाखों फंसते हैं।
तु क्यों अरुणा दुखी हो रही
प्रभु करे जो वही तो होवे।
व्यर्थ प्रपंच करे यह मानव,
कौन हँसे जग सब ही रोवे।
✍
अरुणा डोगरा शर्मा
मोहाली।
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