दिल की गुज़ारिश
दिल ने मेरे ये गुज़ारिश की है
रहने की इसमें तुझे इजाज़त दी है
मान जाओ मेरे दिल की ये अर्ज़
तुम्हारे लिए मैंने ज़माने की खिलाफत की है
हो जाओगे तुम जिस दिन मेरे
समझूंगा रब ने मेरी दुआ कबूल की है
कबतक सहनी पड़ेगी ये बेरुखी तेरी
ये तो बता दो जानेमन मैंने क्या भूल की है
हो बेखबर हालात से मेरे दिल की
मैंने तो हरपल तुझसे मोहब्बत की है
जीना चाहता हूं अब ज़िंदगी साथ में तेरे
जो भी ज़िंदगी जी है मैंने बस तेरी याद में जी है
देना चाहता हूं तुझे जीवन की हर खुशी
तेरे चेहरे पर हमेशा हंसी देखने की मुराद की है
अब तो आ जाओ न इस दिल में
तुझसे एक बार फिर फ़रियाद की है
है ये ज़िंदगी बस चार दिनों की
तू आज भी किस सोच में पड़ी है
जाने कब आ जाए बुलावा उसका
तुझे पाने के लिए मैंने ज़माने से लड़ाई लड़ी है
देख ले कभी तो इस दिल में
तेरे प्यार की शमा इसमें जली है
है नहीं कोई चाहत अब और इसकी
जबसे तुझे पाने की चाहत पली है।