दिल का हर जख्म दिखाना ही गलत है शायद।
गज़ल
काफ़िया… आ स्वर की बंदिश
रदीफ… ही गलत है शायद
फ़ाइलातुन फ़ियलातुन फ़ियलायुन फ़ेलुन
2122……1122…….1122……22
दिल का हर जख्म दिखाना ही गलत है शायद।
यूँ ही दुनियाँ को बताना ही गलत है शायद।
दर्द जिसको भी मिले उसको ही सहने होंगे,
बेवजह सबको सुनाना ही गलत है शायद।
जिसने मझधार में छोड़ा है हमें मरने को,
बेमुरौवत को निभाना ही गलत है शायद।
टाल देते हैं जो हर काम को कल के ऊपर,
उनका ये रोज बहाना ही गलत है शायद।
खुद तो हँसिए भी जमाने को हँसाओ यारो,
गम में हँसना व हँसना ही गलत है शायद।
वो जो माँ बाप की सेवा न करे तो उसको,
ज़र में हकदार बनाना ही गलत है शायद।
उसने देखा भी नहीं जिसके हुए थे ‘प्रेमी’
बेवफा प्यार निभाना ही गलत है शायद।
…….✍️ सत्य कुमार प्रेमी
स्वरचित और मौलिक