दिल का रोग
दिल का रोग बुरा नहीं है
जिंदा है आप, अहसास देता है
वही जान बन जाता है
जो आपकी जान लेता है
चली जाती है जान भी
लेकिन कोई कत्ल नहीं होता
हो जाता है जिसे भी ये रोग
वो कभी ज़िंदगी के लिए नहीं रोता
इसमें सांसों का प्रत्यारोपण होता है
तेरी सांसें मेरी और मेरी सांसें तेरी हो जाती है
होती है दिल में ये क्रिया
लेकिन असर संपूर्ण तंत्रों पर कर जाती है
नींद खो जाती है भूख रहती नहीं
धड़कन बढ़ जाती है सुध-बुध रहती नहीं
खुद को संभालना मुश्किल होता है उसके सामने
निकल जाती है जान जब वो कुछ कहती नहीं
भूख प्यास सब भूल जाती है
सिर्फ़ महबूब की याद आती है
बहाना चाहिए बस मिलने का उससे
मुलाक़ात ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाती है
होते हैं जब वो सामने मेरे
कदम ज़मीं पर टिकते नहीं हैं
जाने क्यों बेचैन हो जाता हूं
जब वो एक पल दिखते नहीं हैं।