दिल और सागर
सागर जिस प्रकार है गहरा ,
इंसान का दिल उतना ही गहरा ।
सागर की थाह न कोई पा सका ,
दिलों को भी कोई जान न सका ।
सागर अपने भीतर खजाने समेटे ,
और इंसान का दिल कई राज समेटे ।
ज्वार भाटा उमड़ता सागर में जैसे ,
विचार भी दिलों में उमड़ते है वैसे ।
सागर निकालता है बेशकीमती रत्न ,
इंसान के दिल में गुबार है नहीं रत्न।
गनीमत है सागर का दिल सब जानते ,
इंसान इंसान को ही नहीं पहचान पाते ।
जिंदगी में सदा इंसा इंसा को देते धोखे ,
शुक्र है सागर के शब्दकोष में नहीं धोखे ।
काश ! इंसान का दिल सागर जैसा होता ,
शीशे सा साफ होता ,कोई भेद न रखता ।