दिल्ली
दिल्ली
कटते जा रहे नगर के सैकड़ों शजर हैं
कैसे होगी गुजर कठिन चारों पहर हैं
दिल्ली तुम दिल वालों की बस्ती रही हो
बाकी सी चितवन कहाँ खो गई वो नजर है
दिल्ली तुम इतनी क्यूँ नाराज हो गई हो
क्यूँ हवाओं में घुलता जा रहा जहर है
महँगाई की दरें बेमिसाल बढ़ रही है
जिन्दगी सस्ती, कीमतें बढ़ रहीं हर पहर हैं
क्यूँ आगजनी लूटपाट और रेप हो रहा
ये तो मंदिर मस्जिद गुरुद्वारो का शहर है
हिन्दू सिख ईसाई मुसलमान सब बस रहे हैं
कब कहाँ खो गई इंसानो की कदर है
मीनाक्षी भटनागर दिल्ली
स्वरचित