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9 Feb 2018 · 1 min read

दिलों की पीर नयन को सजल ही लिख दो ।

लिखो तो गीत कोई एक ग़ज़ल ही लिख दो,
दिलों की पीर नयन को सजल ही लिख दो ।

ग़रीबों के वो सितारे चमकते झोपड़ियों में,
तरसते नींद को ऊँचे महल ही लिख दो ।

जवां दिलों की धड़कने अँधेरे क़मरों में,
किसी के पाँव-आहटें टहल ही लिख दो ।

जो कर सके न मुहब्बत कभी ज़माने में,
नाक़ामयाबी की इक पहल ही लिख दो ।

तुम्हारे दर्द में ‘अंजान’ की तड़प या फिर,
हक़ीकतों की असल या नक़ल ही लिख दो ।

दीपक चौबे ‘अंजान’

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